क्या था कसूर मेरा?

Meghna Dwivedi
1 min readMay 10, 2021

क्या था कसूर मेरा कि मैं किस्मत की इतनी मारी हूँ?
जान गंवा दी फिर भी चेतावनी सी जनहित में जारी हूँ।
तितली सी बेफिकर हो झूमना क्या कोई पाप था?
अपने ही शहर में घूमना क्या कोई अपराध था?
समुंदर सा बाँध, मन्द मन्द मुस्कुराती थी।
माँ को मैं भी अपने सुख दुख की कहानियां सुनाती थी।
पर माँ उस रात मेरी आवाज को तरसती जाती थी।
हाल मेरा देख, जान उसकी कलेजे को आये जाती थी।
निन्दिया जो उड़ी उसकी तो होश उन मक्कारों को भी गवाना होगा।
भड़कती शोला से चिता बन, उनको जलाना होगा।
कठिन था सफर पर उसे पानी बन जाना था।
रोक ना पाया पर्वत उसे, अटल अभिमानी मगर वो भी था।
हुआ न्याय, रंग लाया उसका जगना सारी रात।
लेकिन वो ही जाने कैसे काटे होंगे उसने ये साल सात?
पूछ उठी माँ वो ही फिर सवाल,
क्या था कसूर उसका कि वो किस्मत की इतनी मारी है?
निर्भया के नाम से हुई अमर, मुझे जान से ज्यादा प्यारी है।

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